राजा विक्रमादित्य की न्यायप्रियता और उनकी बुद्धिमत्ता की कहानियां सदियों से प्रचलित हैं। उनकी कहानियां हमें सिखाती हैं कि सच्चाई, ईमानदारी और निष्ठा का महत्व क्या है। आज हम आपको ऐसी ही एक कहानी सुनाएंगे जो हमें विक्रमादित्य के गुण और उनके कौशल को समझने में मदद करेगी।
सिंहासन बत्तीसी की 24वीं कहानी – करुणावती पुतली की कथा
एक दिन, जब राजा भोज सिंहासन पर बैठने के लिए कदम बढ़ा रहे थे, तो 24वीं पुतली करुणावती ने उन्हें रोक दिया और कहा कि यह सिंहासन तुम्हारे लिए नहीं है। पहले मैं तुम्हें राजा विक्रमादित्य की न्यायप्रियता और बुद्धिमत्ता से जुड़ी एक कहानी सुनाती हूं।
राजा विक्रमादित्य अक्सर अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए भेष बदलकर राज्य में घूमा करते थे। एक रात जब वे घूम रहे थे, तो उन्होंने एक मकान के बाहर लटकी रस्सी देखी। उन्होंने सोचा कि शायद कोई चोर इस रस्सी से ऊपर गया हो, इसलिए वे भी रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ गए।
ऊपर पहुंचकर उन्होंने तलवार निकाल ली और चोर को ढूंढने लगे। तभी उन्होंने एक महिला की धीमी आवाज सुनी। उन्हें लगा कि यह महिला ही चोर है। वे दीवार के पास खड़े हो गए और सुना कि महिला किसी से कह रही थी कि उसे अपने पति की हत्या करनी है ताकि वह अपने प्रेमी के साथ रह सके। उस पुरुष ने मना कर दिया और कहा कि वह एक लुटेरा है लेकिन किसी निर्दोष की जान नहीं ले सकता। उसने महिला को दो दिन का समय दिया ताकि वह सारा धन इकट्ठा कर सके।
राजा विक्रमादित्य समझ गए कि महिला इस घर के मालिक की पत्नी है और पुरुष उसका प्रेमी है। उन्होंने रस्सी के सहारे नीचे उतरकर महिला के प्रेमी का इंतजार किया। जैसे ही वह रस्सी से नीचे आया, राजा ने उसकी गर्दन पर तलवार रख दी और अपना परिचय दिया। डर के मारे उस आदमी ने सच-सच सारी कहानी राजा को बता दी।
उसने बताया कि वह महिला से बचपन से प्रेम करता था, लेकिन उसके पिता के कंगाल हो जाने के बाद महिला ने किसी और से शादी कर ली। उसने बदला लेने के लिए समुद्री डाकुओं का सफाया कर दिया और बहुत सारा धन वापस लाया। महिला के मायके आने पर वह फिर से उससे मिलने लगा और उसे नौलखा हार देकर विश्वास दिलाया कि उसके पास बहुत सारा धन है। पर महिला ने उसे अपने पति की हत्या करने के लिए उकसाया, जिसे उसने मना कर दिया क्योंकि किसी निर्दोष की हत्या करना पाप है।
राजा विक्रमादित्य ने उसकी सच्चाई और वीरता की तारीफ की और उसे माफ कर दिया। उन्होंने उसे पुरस्कार दिए और कहा कि सच्चा प्रेम धन से नहीं, बल्कि दिल से होता है।
अगली रात, राजा विक्रमादित्य उस महिला के प्रेमी का भेष बनाकर महिला के पास पहुंचे। महिला ने उन्हें सोने के आभूषणों की थैली दी और बताया कि उसने सेठ को विष देकर मार दिया है। जब राजा चुप रहे, तो महिला को शक हुआ और उसने उनकी नकली दाढ़ी-मूंछ नोच ली। असली पहचान जानने पर महिला ने चिल्लाकर शोर मचाया और राजा को चोर कहकर पुकारा। तभी बाहर खड़े सैनिकों ने महिला को गिरफ्तार कर लिया। राजा विक्रमादित्य को देखकर महिला के होश उड़ गए और उसने विष पीकर अपनी जान दे दी।
सिंहासन बत्तीसी की 24वीं कहानी – करुणावती पुतली की कथा कहानी से सीख:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि लालच और धोखाधड़ी का अंत हमेशा बुरा होता है। हमें सच्चाई, ईमानदारी और निष्ठा के मार्ग पर चलना चाहिए।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs):
- राजा विक्रमादित्य अक्सर भेष बदलकर क्यों घूमते थे?
- प्रजा का हालचाल जानने और राज्य में अपराध को रोकने के लिए।
- राजा विक्रमादित्य ने महिला के प्रेमी को क्या सजा दी?
- उन्होंने उसे माफ कर दिया और उसकी सच्चाई और वीरता के लिए उसे पुरस्कार दिए।
- महिला ने अपने पति की हत्या क्यों करवाई?
- ताकि वह अपने प्रेमी के साथ रह सके और उसका सारा धन हड़प सके।
- राजा विक्रमादित्य ने महिला के प्रेमी को कैसे पकड़ा?
- उन्होंने उसकी गर्दन पर तलवार रखकर उससे सच उगलवाया।
- कहानी का मुख्य संदेश क्या है?
- लालच और धोखाधड़ी का अंत हमेशा बुरा होता है। हमें सच्चाई और ईमानदारी के मार्ग पर चलना चाहिए।