राजा विक्रमादित्य की कहानियां आज भी हमें उनकी न्यायप्रियता, साहस, और बुद्धिमत्ता की याद दिलाती हैं। विक्रम और बेताल की कहानियों ने हमेशा हमें सच्चाई और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी है। इस कहानी में हम विक्रमादित्य और बेताल की प्रारंभिक मुलाकात का वर्णन करेंगे, जिससे बेताल पच्चीसी की कहानियों का सफर शुरू होता है।
विक्रम बेताल की प्रारंभिक कहानी
बहुत समय पहले, उज्जयनी नाम के राज्य में राजा विक्रमादित्य शासन करते थे। उनकी न्यायप्रियता और कर्तव्यनिष्ठता के चर्चे दूर-दूर तक फैले हुए थे। प्रतिदिन उनके दरबार में लोग अपनी समस्याएं लेकर आते थे, और राजा विक्रमादित्य उनकी समस्याओं का निवारण करते थे।
एक दिन, राजदरबार के दौरान, एक भिक्षु आया और राजा को एक फल देकर चला गया। राजा ने उस फल को कोषाध्यक्ष को दे दिया। यह सिलसिला हर दिन चलता रहा, और अगले दस सालों तक भिक्षु प्रतिदिन राजा को एक फल देता रहा। राजा भी प्रतिदिन वह फल कोषाध्यक्ष को सौंप देते थे।
एक दिन, जब भिक्षु ने फिर से फल दिया, तो राजा ने उसे एक बंदर को दे दिया। बंदर ने फल तोड़ा तो उसमें से एक बहुमूल्य रत्न निकला। यह देख दरबार में सभी लोग हैरान रह गए। राजा ने कोषाध्यक्ष से पिछले सभी फलों के बारे में पूछा, तो कोषाध्यक्ष ने बताया कि सभी फल सड़-गल गए हैं और उनमें से रत्न मिले हैं। राजा ने कोषाध्यक्ष से सारे रत्न मंगवाए और उन्हें देखकर प्रसन्न हुए।
अगली बार जब भिक्षु दरबार में आया, तो राजा ने उससे पूछा कि वह प्रतिदिन इतनी बहुमूल्य भेंट क्यों लाता है। भिक्षु ने राजा को एकांत में चलने के लिए कहा और वहां बताया कि उसे एक मंत्र साधना करनी है, जिसके लिए एक वीर पुरुष की आवश्यकता है। उसने राजा से कहा कि वह वीर पुरुष राजा ही हो सकते हैं, इसलिए वह राजा को यह उपहार देता है।
राजा विक्रमादित्य ने भिक्षु की सहायता करने का वचन दिया। भिक्षु ने कहा कि अगली अमावस्या की रात को राजा को श्मशान आना होगा, जहां वह साधना की तैयारी करेगा। अमावस्या की रात, राजा श्मशान पहुंचे। भिक्षु ने उन्हें पूर्व दिशा में स्थित महाश्मशान में जाकर एक शीशम के पेड़ पर लटके मुर्दे को लाने का आदेश दिया। राजा मुर्दे को लाने के लिए चल पड़े।
महाश्मशान में पहुंचकर राजा ने देखा कि शीशम के पेड़ पर एक मुर्दा लटका हुआ है। उन्होंने अपनी तलवार से डोर को काटा, जिससे मुर्दा जमीन पर आ गिरा और जोर से चीखने की आवाज आई। राजा को लगा कि यह कोई जिंदा इंसान है। थोड़ी देर बाद मुर्दा जोर-जोर से हंसने लगा और फिर पेड़ पर जाकर लटक गया। राजा समझ गए कि यह बेताल है।
राजा ने बेताल को पेड़ से उतार कर अपने कंधे पर लाद लिया। बेताल ने विक्रम से कहा, “विक्रम, तुम बहुत साहसी हो। मैं तुम्हारे साथ चलूंगा, लेकिन मेरी शर्त है कि पूरे रास्ते में तुम कुछ भी नहीं बोलोगे।” विक्रम ने सिर हिलाकर बेताल की शर्त मान ली।
बेताल ने कहा, “रास्ता लंबा है, इसलिए इसे रोमांचक बनाने के लिए मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं।” और इस प्रकार बेताल पच्चीसी की 25 कहानियों का सफर शुरू हुआ।
कहानी से सीख:
राजा विक्रमादित्य की तरह एक राजा को हमेशा साहसी और पराक्रमी होना चाहिए। तभी वह अपनी प्रजा की रक्षा कर सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs):
- राजा विक्रमादित्य के दरबार में भिक्षु क्या लेकर आता था?
- भिक्षु प्रतिदिन राजा को एक फल देकर जाता था, जिसमें बहुमूल्य रत्न छिपे होते थे।
- राजा विक्रमादित्य ने भिक्षु से क्यों पूछा कि वह बहुमूल्य भेंट क्यों देता है?
- क्योंकि राजा जानना चाहते थे कि भिक्षु हर दिन इतने बहुमूल्य रत्न उन्हें क्यों अर्पित करता है।
- भिक्षु ने राजा विक्रमादित्य से क्या मदद मांगी?
- भिक्षु ने राजा से मंत्र साधना के लिए सहायता मांगी और कहा कि उसे एक वीर पुरुष की आवश्यकता है।
- राजा विक्रमादित्य ने बेताल को कैसे पकड़ा?
- राजा ने बेताल को पेड़ से उतार कर अपने कंधे पर लाद लिया, हालांकि बेताल ने उन्हें डराने की कोशिश की थी।
- बेताल ने विक्रमादित्य से क्या शर्त रखी?
- बेताल ने शर्त रखी कि विक्रमादित्य पूरे रास्ते में कुछ भी नहीं बोलेंगे।