राजा विक्रमादित्य की बुद्धिमत्ता और उनके निर्णय लेने की क्षमता की कहानियां बहुत प्रसिद्ध हैं। ऐसी ही एक कहानी है जो हमें बताती है कि मनुष्य का जन्म और कर्म कैसे उसके जीवन को आकार देते हैं। यह कहानी राजा भोज के दरबार की है, जहां उन्होंने अपने मंत्रियों के साथ एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा की।
कहानी:
एक दिन, राजा भोज अपने दरबार में मंत्रियों के साथ बैठे किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा कर रहे थे। बातों-बातों में मंत्रियों के बीच बहस छिड़ गई कि मनुष्य जन्म से महान होता है या कर्म से। मंत्री दो गुटों में बंट गए। एक गुट का मानना था कि मनुष्य जन्म से महान होता है क्योंकि उसके पूर्वजों के कर्म ही उसके जीवन का निर्धारण करते हैं। दूसरे गुट का मत था कि मनुष्य अपने कर्मों से महान बनता है, क्योंकि अच्छे कर्म ही उसे श्रेष्ठ बनाते हैं।
पहले गुट ने तर्क दिया कि जन्म से मिले संस्कार कभी नष्ट नहीं होते। जैसे कमल का पौधा कीचड़ में रहकर भी शुद्ध होता है, गुलाब कांटों में खिलकर भी सुंदर होता है, और चंदन के पेड़ पर सांप रहते हुए भी उसकी खुशबू कम नहीं होती। वहीं, दूसरे गुट ने कहा कि अगर कर्म अच्छे न हों, तो अच्छे परिवार में जन्म लेने का कोई लाभ नहीं। राजा विक्रमादित्य इस बहस को चुपचाप सुन रहे थे और सोच रहे थे कि इस समस्या का समाधान कैसे किया जाए।
उन्होंने तुरंत आदेश दिया कि जंगल से एक शेर का बच्चा पकड़ा जाए। सैनिक शेर के नवजात बच्चे को लेकर आए। फिर राजा ने एक गडरिये को बुलाया और उसे शेर का बच्चा देकर कहा कि इसे बकरी के बच्चों के साथ पालें। गडरिया कुछ समझ नहीं पाया, लेकिन राजा का आदेश मानने के अलावा उसके पास कोई विकल्प नहीं था। उसने शेर के बच्चे को बकरियों के साथ पालना शुरू कर दिया। शेर का बच्चा भी बकरियों की तरह दूध पीता और उनके साथ रहता।
समय बीतता गया और शेर का बच्चा बड़ा होने लगा। उसने बकरियों के साथ रहना, उनके साथ खेलना सीख लिया, लेकिन वह हरी घास नहीं खाता था। राजा ने गडरिये से कहा कि उसे मांस नहीं खिलाया जाए, बस दूध पर ही पाला जाए। गडरिया यह सोचकर परेशान था कि एक मांसाहारी जीव को शाकाहारी बनाने का क्या उद्देश्य है। फिर भी, उसने राजा का आदेश मानते हुए शेर को दूध पर ही पाला।
एक दिन, जब शेर का बच्चा और भी बड़ा हो गया, तो राजा ने उसे एक पिंजरे में बंद शेर के सामने रखा। सभी बकरियां और शेर का बच्चा डरकर भाग खड़े हुए। राजा ने आदेश दिया कि अब शेर के बच्चे को अलग रखा जाए और उसे भूख लगने पर मांस दिया जाए। कुछ दिन बाद, शेर का बच्चा धीरे-धीरे अपने प्राकृतिक स्वभाव में लौटने लगा और शिकार करने लगा।
फिर एक दिन, जब शेर के सामने वही पिंजरे वाला शेर आया, तो वह डरकर नहीं भागा। उसने भी दहाड़ लगाई और अपने असली स्वभाव को दिखाया। यह देख राजा विक्रमादित्य ने अपने मंत्रियों से कहा कि मनुष्य का जन्म और संस्कार उसके स्वभाव को आकार देते हैं, लेकिन कर्म ही उसे महान बनाते हैं।
इस पर मंत्रियों ने राजा की बात से सहमति जताई। एक दीवान ने कहा कि राजकुल में जन्म लेने वाला ही राजा बनता है। इस पर राजा मुस्कुरा दिए और कहा कि कर्म ही जीवन का असली मापदंड हैं।
समय बीतता गया और एक दिन एक नाविक सुंदर फूल लेकर दरबार में आया। राजा ने सैनिकों को भेजा कि वे पता लगाएं कि ये फूल कहां से आते हैं। सैनिकों ने देखा कि एक योगी उल्टा लटका हुआ था और उसके घावों से खून बहकर नदी में गिरते ही फूलों में बदल जाता था। राजा ने मंत्रियों को बताया कि वे योगी उनके पिछले जन्म के कर्मों का फल भोग रहे थे और अब राजा बने हैं।
कहानी से सीख:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने कर्मों का महत्व समझना चाहिए। कठिन परिश्रम और सच्चाई के मार्ग पर चलकर ही हम अपने जीवन को महान बना सकते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs):
- राजा भोज के दरबार में किस मुद्दे पर बहस हुई?
- मनुष्य जन्म से महान होता है या कर्म से।
- राजा भोज ने शेर के बच्चे को क्यों पालने का आदेश दिया?
- यह साबित करने के लिए कि जन्म और संस्कार मनुष्य के स्वभाव को प्रभावित करते हैं, लेकिन कर्म उसे महान बनाते हैं।
- शेर के बच्चे का व्यवहार कैसे बदल गया?
- शुरुआत में वह बकरियों की तरह व्यवहार करता था, लेकिन बाद में उसने अपना असली स्वभाव दिखाया और शिकार करना सीखा।
- राजा ने मंत्रियों को क्या सिखाया?
- राजा ने सिखाया कि जन्म और संस्कार महत्वपूर्ण हैं, लेकिन कर्म ही जीवन को महान बनाते हैं।
- कहानी का मुख्य संदेश क्या है?
- हमें अपने कर्मों का महत्व समझना चाहिए और कठिन परिश्रम के साथ सही अवसर का इंतजार करना चाहिए, जिससे हमारा असली व्यक्तित्व सामने आता है।